Thursday, December 15, 2011

कश्मकश

इसी कश्मकश में है ज़िंदगी 
तुझे पा सकूं ना भूला सकूं 


मैं परेशां फिर इस दिल से हूं 
मैं तड़पना इसका ना सह सकूं 
ना मैं कह सकूं ना यूं रह सकूं 


बिन तेरे ये ज़ीस्त अब कैसे कटे 
ना मैं बढ़ सकूं ना मैं थम सकूं 


जो तुने भी ठुकरा दिया है 
मैं क्या करूं मैं ना जी सकूं 


तुने दे तो दी मुझे रुखसती 
पर क्या करूं मैं ना चल सकूं 


बड़ी तेज़ है हवा अभी 
मुझे थाम ले मैं ना गिर पडूं 


तू बुझा भी दे ये चांदनी 
कहीं यूं ना हो मैं जल मरूं 


जो दिया ये तुने है फैसला 
इसे कुछ भी ना मैं समझ सकूं 


किये वादे हमने थे साथ साथ 
उन्हें तन्हा कैसे मैं निबाह लूं 


तेरा ज़ख़्म कितना अजीज़ है 
इसे दिल से ना मैं मिटा सकूं 


पूर सुकून है ये ख़ामोशी 
कहूं तो लगे गुनाह करूं 


क्यों लगे है सच्चा ये सन्नाटा 
क्या उमर यूं ही मैं गुज़ार दूं