आधे अलसाये से दिन बाद
शाम एक ख्याल ने दस्तक दी
कहा आज कुछ इतर करते हैं
चलो किसी नये ज़ज़ीरे चलते हैं
आओ मेरा हाथ थाम साथ जुड़ो
वो देखो तुम जो किया ना हो
क्यूं ऐसे भारी मन रहते हो
किसकी जुस्तज़ू करते हो
दिल हल्का हो गया था शायद
.. मैं बता ना सका उस वक़्त
कैसे अपनी ही इक परवाज़ ने
., मुझे ज़मींदोज़ कर दिया है