Monday, February 14, 2011

ज़मींदोज़

आधे अलसाये से दिन बाद
शाम एक ख्याल ने दस्तक दी
कहा आज कुछ इतर करते हैं
चलो किसी नये ज़ज़ीरे चलते हैं

आओ मेरा हाथ थाम साथ जुड़ो
वो देखो तुम जो किया ना हो
क्यूं ऐसे भारी मन रहते हो
किसकी जुस्तज़ू करते हो

दिल हल्का हो गया था शायद
.. मैं बता ना सका उस वक़्त
कैसे अपनी ही इक परवाज़ ने
., मुझे ज़मींदोज़ कर दिया है

Monday, February 7, 2011

हिज़्र

जितना सह सकूँ उससे ज्यादा तेरी कमी महसूस की है 
किसी याद में भी नहीं पाता कि मैं भूला तुझे कभी


चाँद जल्दी अब्र पे सज गया आज, जैसे तुम्हें ढूँढने आया हो 
सारा घर पलट कर देखा मैंने, हर सामान पर तेरा अक्स है
छूकर देखा तो हाथों में सीलन का एहसास पाया
., वो ज़रूर तेरी नम आँखों का ही लम्स होगा


ये धागा भी अब टूटने आया, गोया कि झूठ कहा हो पंडित ने 
जब हमें साथ बांधने, दोनों को लाल मौली दी थी उसने 
तुम मुझ पर भरोसा नहीं रखती, जानता हूँ लेकिन फिर भी
अगर कुछ ख़ास न करो तो, उस ब्राहमण की बात रखने ही आओ


देर शाम दूसरी सालगिरह है हिज़्र की 
सोचा इस बरस साथ ही मना लें ..


तुम्हारे पास रहने सिवा भी हसीं तोहफ़ा, अब क्या होगा !

Friday, February 4, 2011

कमरा


दीवारों की सीलन, छत की दरारें गिन जी उब गया
इस १२ x ८ के पिंजरे में दिन अब नहीं समाता
ये काली खिड़की भी शाम से, उदास रहती है
बेचैन रात करवटें लेती है ७ x ३ के बिस्तर पे
खटमल रेंगने लगते हैं हर वक़्त बदन पर मेरे

दाग़ी फ़र्श की तरह तुममें छिप जाऊं तो क़रार मिले

Thursday, February 3, 2011

झूला



दिन जलकर रात हो जाता है 
शामें अब नहीं हुआ करती 


दरवाज़े पे याद की दस्तक तेरी 
खामोशियां तोड़ जाती है मेरी


मन की सेज पर ख्याल बिछाना
नींदों के पाखी यूं ही रोज़ उड़ाना 


इक तेरे साथ का लम्हा था सजाना
कोशिशें की मैंने मगर वो ना माना


आंगन के झूले पर वक़्त ही नहीं बैठता
क्यूं कर ज़िद मेरी भला ये ना समझता

Wednesday, February 2, 2011

सिलसिला


रात कल बड़ी काली, लम्बी थी 
बेतरतीब, तुम्हारे बालों सी 

गेसू एक मेरे तकिये पे मिला भी 
महक तेल की अब तलक ज़िंदा थी

आ वो ख़ुश्बू ज़ेहन से लिपटी 
उसे है पहचान, तेरी याद की 

हैरान शक्ल बात कर हंसी 
देखा हो शायद मुझे कहीं

सरे वक़्त चला सिलसिला यही
गयी शब .. फिर मैं सोया नहीं