Monday, February 14, 2011

ज़मींदोज़

आधे अलसाये से दिन बाद
शाम एक ख्याल ने दस्तक दी
कहा आज कुछ इतर करते हैं
चलो किसी नये ज़ज़ीरे चलते हैं

आओ मेरा हाथ थाम साथ जुड़ो
वो देखो तुम जो किया ना हो
क्यूं ऐसे भारी मन रहते हो
किसकी जुस्तज़ू करते हो

दिल हल्का हो गया था शायद
.. मैं बता ना सका उस वक़्त
कैसे अपनी ही इक परवाज़ ने
., मुझे ज़मींदोज़ कर दिया है

No comments:

Post a Comment