Wednesday, February 2, 2011

सिलसिला


रात कल बड़ी काली, लम्बी थी 
बेतरतीब, तुम्हारे बालों सी 

गेसू एक मेरे तकिये पे मिला भी 
महक तेल की अब तलक ज़िंदा थी

आ वो ख़ुश्बू ज़ेहन से लिपटी 
उसे है पहचान, तेरी याद की 

हैरान शक्ल बात कर हंसी 
देखा हो शायद मुझे कहीं

सरे वक़्त चला सिलसिला यही
गयी शब .. फिर मैं सोया नहीं

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